फिर से ,फिर से ,आज फिर से;
छलनी हुआ देश का सीना फिर से;
रक्त लारियों से भींगी धरती फिर से;
आतंक लौट कर आया इक बार फिर से;
किसका दोष ,किसकी चूक ,पूंछे हम किससे ;
हृदय मद्य घुसा है शूल फिर भी बैठे है चुप से;
दहशत चहुओर और चेहरे गम-सुम से;
कर्ण विदारक चीत्कारों को सुने हम अब कैसे;
होंगी जाँच ,बैठेंगी समितियां ,अब फिर से;
कोरी जिरह करेंगे सब मिल के ;
कोई ढाढस,किसी को लगेगा आम सा ;
कोई जोड़ेगा इसे किसी “रंग” से;
हूलड-हुड़दंग ,शोक सभाऐ,संसद स्थगन ,फिर से;
बड़ी -बड़ी चर्चाऐ,रोचक वार्ताऐ,फलक कैमरों के चप्पे -चप्पे;
आम होंगी फिर दह्शद गथाओ के किस्से ;
खूब बिकेंगी ये चर्चाऐ और लोक कल्याण की झूठी गप्पे ;
कल फिर कम होगा गर्माहट हल्क़े-हल्क़े;
फिर ग़ुम हो जाएँगे सब अंशु और आहे ;
प्रश्न अनुतरित छोर ,ठंढी होंगी फिर हवाए ;
चीख की खोज में,रक्तपात का इंतजार होगा फिर से |

hindi_poem_फिर से