फ़ख़रुद्दीन अली अहमद

Fakhruddin Ali Ahmed

(राष्ट्रपति 1974 से 1977)

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद भारतवर्ष के पाँचवें राष्ट्रपति (नाम के अनुसार फ़ख़रुद्दीन अली अहमद पाँचवें राष्ट्रपति और कार्यकाल के अनुसार यह छठे राष्ट्रपति) के रूप में जाने जाते हैं।

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई, 1905 को पुरानी दिल्ली में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘कर्नल जलनूर अली अहमद’ और दादा का नाम ‘खलीलुद्दीन अहमद’ था। दादा गोलाघाट शहर के निकट कदारीघाट के निवासी थे, जो असम के सिवसागर में स्थित था। इनके दादा का निकाह उस परिवार में हुआ था, जिसने औरंगज़ेब द्वारा असम विजय के बाद औरंगज़ेब के प्रतिनिधि के रूप में असम पर शासन किया था। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के पिता तब अंग्रेज़ सेना में इण्डियन मेडिकल सर्विस के तहत कर्नल के पद पर थे। इन्हें एक घटना के कारण असम छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। फिर 1900 में इनका निकाह नवाब साहब की पोती के साथ पढ़ दिया गया और नवाब की पोती के साथ निकाह होना बेहद सम्मान की बात थी। इनकी बेगम का नाम रुकैय्या था। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद इनके ही पुत्र थे । फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के चार भाई और पाँच बहनें थीं। यह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।

शिक्षा

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद न केवल एक नामी मुस्लिम घराने में पैदा हुए थे, बल्कि इनके परिवार में बेहद सम्पन्नता और शिक्षा के प्रति अच्छी जागृति भी थी। इनकी आरंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के गोंडा में सरकारी हाई स्कूल में सम्पन्न हुई, लेकिन 1918 में पिता का स्थानांतरण दिल्ली हो गया। तब यह भी दिल्ली आ गए। उस समय वह सातवीं कक्षा के छात्र थे।

1921 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद प्रसिद्ध स्टीफन कॉलेज में दाखिल हुए। कुछ समय पश्चात् यह उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैण्ड चले गए। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अंतर्गत इनका दाखिला सेंट कैथरिन कॉलेज में हो गया।

1927 में स्नातक स्तर की शिक्षा तथा 1928 में विधि की शिक्षा सम्पन्न कर ली। विधि की डिग्री लेने के बाद यह भारत लौट आए और पंजाब हाई कोर्ट में वकील के तौर पर नामांकित हुए।

व्यवसाय

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद अपने पिता के मित्र मुहम्मद शफी जो पेशे से एक एडवोकेट थे उनके सहयोग में आकर एक सहयोगी के रूप में विधि व्यवसाय करने लगे। लेकिन कुछ समय बाद पिता की प्रेरणा से फ़ख़रुद्दीन अली असम चले गए। इन्होंने अपने गृह राज्य के गोहाटी हाई कोर्ट में विधि व्यवसाय आरंभ किया। कुछ समय बाद इन्हें बड़ी सफलता प्राप्त हुई। यह उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ एडवोकेट के रूप में कार्य करने लगे।

राजनैतिक सफ़र

फ़ख़रुद्दीन अली के पिता कर्नल जलनूर अली अहमद एक राष्ट्रवादी शख़्स थे लेकिन स्वयं फ़ख़रुद्दीन अली ने उनसे एक क़दम आगे रहते हुए 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता प्राप्त कर ली। 1937 में यह असम लेजिसलेटिव असेम्बली में सुरक्षित मुस्लिम सीट से निर्वाचित हुए। लेकिन तब वह एक स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से असेम्बली में पहुँचे थे।

जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर ही उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर स्वयं को नामांकित किया था। यह पहले जवाहरलाल नेहरू के नजदीक आए। उसके बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से इनकी अंतरंगता बढ़ गई। जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें कांग्रेस की कार्य समिति का सदस्य बनाया।

1938 में जब गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में असम में कांग्रेस की संयुक्त सरकार बनी तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। वित्त और राजस्व विभाग का दायित्व संभालते हुए इन्होंने विशिष्ट एवं उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की तथा राज्य की वित्तीय स्थिति में अपेक्षित सुधार किया।

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने भी उसमें भाग लिया। इस कारण अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें 13 अप्रैल 1940 को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया। रिहा होने कुछ समय पश्चात् इन्हें सुरक्षा कारणों से पुन: गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार इन्हें अप्रैल 1945 तक साढ़े तीन वर्ष जेल भुगतनी पड़ी।

1952 में इन्हें राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त हुई और संसद में पहुँच गए। 1955 में वह भारतीय वकीलों के शिष्टमंडल का नेतृत्व करते हुए सोवियत संघ भी गए। 1957 में उन्होंने यू. एन.ओ. में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।

इसके बाद असम विधानसभा में निर्वाचित हुए और इन्हें असम राज्य की बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गईं। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने वित्त, क़ानून और पंचायत विभागों को संभाला। 1962 में यह पुन: असम विधानसभा में पहुँचे और इन्हें मंत्रिमंडल में स्थान भी प्राप्त हुआ। लेकिन उन्होंने स्वैच्छिक आधार पर ‘स्थानीय स्वायत्त सरकार’ से त्यागपत्र दे दिया।

1964 में यह सोवियत संघ के निमंत्रण पर मॉस्को गए। वापसी में इन्होंने जापान और हांगकांग की यात्रा भी की। 1965 में वह मलेशिया के स्वाधीनता समारोह में भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हुए। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर रहते हुए पश्चिम जर्मनी, इंग्लैण्ड, हंगरी, बुल्गारिया, इटली, सोवियत संघ, फ्रांस, ईरान और श्रीलंका की यात्राएं कीं। मोरक्को में जब इस्लामिक सम्मेलन हुआ तो यह भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। 1971 में वह भारत सरकार के प्रतिनिधि बनकर अरब गए |

वैवाहिक जीवन
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने विवाह का निर्णय काफ़ी समय बाद किया। उन्होंने 9 नवम्बर 1945 को 40 वर्ष की उम्र में आबिदा हैदर के साथ निकाह किया। आबिदा हैदर के वालिद का नाम मुहम्मद सुलतान हैदर ‘जोश’ था। यह अंग्रेज़ी हुकूमत की सिविल सर्विस में थे। बेगम आबिदा का जन्म हरदोई उत्तर प्रदेश में 17 जुलाई, 1923 को हुआ था। निकाह के समय इनकी आयु 22 वर्ष थी और इनके शौहर इनसे 18 वर्ष बड़े थे।

आबिदा बेगम ने इंदिरा कांग्रेस के टिकट पर बरेली उत्तर प्रदेश की सीट से लोकसभा का उपचुनाव जीता और जून 1981 में सांसद निर्वाचित हुईं। लोकसभा सदस्या के रूप में इन्होंने बरेली की जनता में अपनी विशिष्ट साख बनाई। इस कारण बरेली की ही संसदीय सीट से यह 1984 में पुन: लोकसभा में पहुँचीं।

राष्ट्रपति बनना

24 अगस्त 1974 को सुबह 9 बजे फ़ख़रुद्दीन अली ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।  31 तोपों की सलामी के मध्य इन्होंने राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला।

राष्ट्रपति चुनाव में मिला वोट

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को राष्ट्रपति चुनाव में 7,65,587 वोट मिला |

निधन

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का निधन 11 फरवरी 1977 हृदयाघात से हो गया । इन्हें संसद मार्ग पर स्थित ‘ जामा मस्जिद’ में राष्ट्रीय सम्मान के साथ दफनाया गया। 13 फरवरी 1977 को शाम 4.30 बजे इनका पूर्ण मुस्लिम रीति-रिवाजों के साथ दफ़न किया गया।