गाम परदेशिया – Maithili Poem
मिथिला,मैथिली, मातृपदेश ;
भागि गेल छलहूँ परदेश ;
बड्ड अख्क्षेलाहूँ ,अहुछिया कटलाहूँ ;
फेर आयल हमरा होश ;
आ घुरी ऐलाहूँ अपना देश ;
बस उतैरते माथ धुरी लगेलहूँ ;
पेलहूँ प्राण ,आशीष आ स्नेह ;
गामक मंदिर घंटिक स्वर;
महुआक गंध ,आ कोयलिक कुक ;
पुलक तर सँ बहैत कमला बलान ;
ग्रामक द्वार “बंशी बाबू “क दलान ;
ख़ड़क’ टाल आ पुड़ना मचान ;
थ्रेशरक दौण आ उसनत धान ;
धुक-धुक कनहा मशीनक स्वर ;
पुन:स्मरित भेल बेरका पहर;
गुल्ली-डंडा आ लगड़ी खेलाय ;
भागैत छलहूँ छोड़ी आफन तोरैत अपन माय
सब किछु अपन ,आ किछु परिवर्तन ;
पुरना गाम आयल किछु आवर्तन;
साईकिल चलबैत बलिकागन;
ग्रामक ओलतिये नव स्कूलक प्रांगन ;
पग-पग बढ़ैत,आयल नविनता ;
पक्की सड़क आ सॉलर लाइट एकटा ;
कोने-कोने गरल चापाकल ;
आ मुखिया पोखैर,केचली तsर ;
पियर-पियर पंचायत भवन ;
आ नंगटे धिया-पूता “सेविका” क संग ;
उरल “रामेश्वरनाथक “रंग ;
बकरी चरैत मंदिरक उपवन;
नव कनिया संग सज्जल गाम ;
रोड,पैन’,आ इजोतक चिक्कन इंतजाम;
मुदा कहा’ अछि सोहर तान आ घुड़क जुटान ;
गुम अछि गप्प-लहड़ी आ स्नेह -मिलान ;
सुन्न ढलैया बनल अछि बिधबा क चान;
जै ठाम मिल क’ जरैत छल होरी;
आब चारि कोण में चारि टा होरी ;
जैर रहल अछि बेर-बेरी ;
की यैह अछि?सुशासनक हेरी ;
गाम छल,गामे रहत;
हमर रंग बरु एकरो चढ़ल;
हम घुड़ी ऐलौ,ई नहि आयत;
कोनों बात नै हउ भाई;
देख-देख कखनो त ‘मोन पड़त विलायत ।

गाम परदेशिया – Maithili Poem
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