भारत में खेल

 

अपने देश में यूँ तो बहुतो खेल खेले जाते है कुछ बचपन में तो कुछ जवानी में। हममे से ज्यातर लोग बचपन में खेला करते थे पिट्टो, छुपा-छुपाई, कबड्डी, इत्यादि। पर बड़े होने के बाद अब हमारा interest उन खेलों से हट गया। अब बचपन की बात अगर हटा दी जाये तो कुछ ही खेल है जो हम लोग देखना पसंद करते है, जेसे क्रिकेट, फुटबॉल इत्यादि। मुख्य रूप से क्रिकेट पर भारत में क्रेज है ।

 

अगर खेल और vikas की बात की जाये तो विकसित और विकासशील देशों के जीडीपी में खेल का बहुत बड़ा योगदान होता है। अपने हिंदुस्तान के लिए भी खेल बहुत जरुरी है लेकिन हमलोग केवल कुछ खेल पर ही ध्यान देते हैं। हालाँकि सरकार के प्रयास और प्रचार से अब दुसरे खेलों जैसे बैडमिंटन, हॉकी, कब्बडी इत्यादि पर भी लोग इंटरेस्ट ले रहें है।

 

भारत में खेलों के field में काम करने और इसको आगे बढ़ने के लिए अलग से खेल मंत्रालय है। जो खेलो को आगे बढ़ने के लिए काम करता है। 1984 में, भारतीय खेल प्राधिकरण की suruwat हुई थी।  खिलाडियों को प्रोत्साहित करने के लिए कई सारे खेल पुरस्कार भी दिए जाते है।  ‘अर्जुन पुरस्कार’, ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ इत्यादि कई सारे पुरस्कार है।

 
भारत में खेलों की स्थिती

आज भारत में खेल एक बहुत बड़ा उद्योग बन चूका है। खेल आज जीडीपी में बहुत बड़ा योगदान देता है। परन्तु  भारत में खेल के chetra में कई sari मुलभुत कमियां आज भी है। सबसे पहले तो शुरुवात अपने घर से ही करते है। आज भी हमलोगों में से ज्यादातर घरों में खेल को बस वही स्थान प्राप्त है जो पहले था। मतलब दिन भर पढाई करो और saam में थोडा सा मन बहलाने के लिए खेलने को दिया जाता है।

 

बहुत कम ही घर है जिसमे खेल को एक करियर के रूप में देखा जाता है। कोई बच्चे को इंजिनियर बनाना चाहता है कोई डॉक्टर। क्रिकेटर या बैडमिंटन का खिलाडी कितने लोग बनाना चाहते है अपने बच्चे को ! बहुत कम। क्यों की बहुत ही सीधी सी बात है खेल में करियर बनाने का रास्ता उतना सीधा भी नहीं जितना चुपचाप पढाई करते रहो और आखिर में एक नौकरी ज्वाइन कर लो। सरकारी मिले तो बहुत अच्छा नहीं तो प्राइवेट तो है ही।

 

कारण और भी है जो हमारे परिवार वालो को रोकता है, हमे रोकता है। खेल के field में आगे बढ़ने के लिए चाहिए सही मार्गदर्शन, achhi ट्रेनिंग। नए नए खेल उपकरण जो की बहुत महंगे आते है। सरकारी प्रोत्साहन की कमी। हालाँकि पहले की तुलना में सरकार का योगदान, प्रोत्साहन खेल के छेत्र में कई सों गुना ज्यादा है परन्तु अभी भी अपने गाँव और कस्बो के बच्चे कभी दूर है इन facilities से।

 

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आज jarurat इस बात की है की हम स्कूल से ही शुरुवात करें। स्कूल में बच्चो को पढाई के साथ साथ खेलो के बारे में भी बताया जाये, सिखाया जाये। वेसे तो बड़े शहर के कई सारे achhe स्कूल में maine देखा है खेल को सिखाया जाता है। क्रिकेट, बैडमिंटन, तैराकी, जुडो इत्यादि। लेकिन बड़े शेहरो से काम नहीं चलने वाला। जरुरी है की हम सरकारी school में तथा गाँव तक के स्कूल में इस बात को लागु करे की वह भी बच्चो को खेल के लिए प्रोत्साहित किया जाये।

 

सरकार की तरफ से भी कुछ योजनाओ को लाया जाना चाहिए ताकि युवा खेल के लिए उत्साहित हो। और अगर कोई खेल को ही अपना करियर बना चाहे तो उसको मदद मिले चाहे वो आर्थिक हो या मानसिक। भारतीय युवाओं को खेलों के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए भारत में अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन आयोजित किए जाने चाहिए। अपने भविष्य के आने वाले युवा आशा है की खेलो को भी करियर बनाने में हिचकेंगे नहीं और अपने देश का नाम रोशन करेंगे, अंतरराष्ट्रीय स्थर पर खेलो में जीत का पताका लहरा कर। जय हिन्द।