विश्वनाथ प्रताप सिंह

 

श्री वी.पी सिंह की जीवनी
श्री वी.पी .सिंह का जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के अलाहाबाद शहर में हुआ था | वे राजपूत घराने से संबंध रखते थे | इनके पिता भगवती प्रसाद सिंह अथाह धन –संपदा वाले व्यक्ति थे | श्री .वी.पी .सिंह का पूरा नाम विश्वानाथ प्रसाद सिंह है | जब विश्वानाथ 5 वर्ष के हुए तो गोपाल सिंह नामक व्यक्ति ने उन्हें गोद ले लिया | जब विश्वानाथ 10 वर्ष के हुए तो गोपाल सिंह का देहांत हो गया इसलिए वे अपने घर वापिस लौट गये|

 

श्री .वी.पी .सिंह की शिक्षा
वी.पी .सिंह ने कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल, देहरादून से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की मेट्रिक और इंटर की परीक्षा अच्छे नंबरों से उतीर्ण करने के बाद फिर अलाहाबाद विशविद्यालय से उन्होंने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और फिर वही से एल.एल.बी की डिग्री भी प्राप्त की | और आगे पढने के लिए वे पुणे चले गये और वहा से उन्होंने बी.एससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी के अंकों से उतीर्ण की |

 

विश्वनाथ प्रताप सिंह इलाहाबाद के कोरॉव में स्थित गोपाल विद्यालय इंटर कालेज के संस्थापक थे। वे 1947-48 में वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष थे एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष भी रहे।

 

श्री वी.पी .सिंह का वैवाहिक जीवन

25 जून 1955 को श्रीमती सीता कुमारी से उनका विवाह हुआ था। उनकी शादी पारिवारिक मिलाप से ही की गयी थी। अपनी शादी के दिन श्री. वी. पी.सिंह 24 साल के हुए थे और उनकी पत्नी 18 साल की थी। श्रीमती कुमारी जाती से एक सिसोदिया राजपूत थी। उन दोनों को दो बेटे है, अजय सिंह ,  और  अभी सिंह ।

 

विश्वनाथ प्रताप सिंह का राजनीतिक सफ़र
वी.पी .सिंह ने 1957 में भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया एवं इलाहाबाद जिले के पासना गांव में सुस्थित खेत को दान में दिया था। 1969 में कांग्रेस पार्टी का सदस्य बने रहते हुए सिंह उत्तर प्रदेश की वैधानिक असेंबली के सदस्य भी बने। इसके बाद 1971 में उनकी नियुक्ती लोक सभा में भी की गयी और उन्हें वाणिज्य मंत्रालय में मंत्री बना दिया गया| फिर 1974 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उन्हें कॉमर्स का डिप्टी मिनिस्टर भी बनाया। 1976 से 1977 तक उन्होंने कॉमर्स का मिनिस्टर बने रहते हुए सेवा की थी।

 

1980 में जब गाँधी पुनर्नियुक्त की गयी थी तब इंदिरा गाँधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया था। मुख्यमंत्री (1980-82) के पद पर रहते हुए उन्होंने बटमारी की समस्या को सुलझाने के लिए काफी प्रयास किये।

 

उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम इलाको के ग्रामीण भागो में यह समस्या गंभीर रूप से व्याप्त थी। इसके चलते उन्होंने बहुत से लोगो का भरोसा जीत लिया था और अपने इलाको में बहुत सी ख्याति प्राप्त कर ली थी। और कुछ समय बाद उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र भी कर दिया था।

 

1983 में फिर से उनकी नियुक्ती मिनिस्टर ऑफ़ कॉमर्स के पद पर की गयी थी। 1984 का वर्ष भारत के लिए भारी उथल –पुथल वाला रहा | इस वर्ष इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी | उनकी हत्या से सारा देश हिल गया था | इंदिरा गाँधी विश्वानाथ जी पर काफी विश्वास करती थी लेकिन राजीव जी के आने से उनपर से विश्वास कम होता चला गया | इसके बाद 1989 के चुनाव में सिंह की वजह से ही बीजेपी राजीव गाँधी को गद्दी से हटाने में सफल रही थी। 1984 से लेकर 1987 तक विश्वनाथ जी ने राजीव जी के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त ,वाणिज्य एवं रक्षा मंत्री के पदों पर कार्य किया |

 

11 अप्रैल ,1987 उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया | राजीव जी और विश्वनाथ जी की लड़ाई अधिकारों की लड़ाई थी | कहा जाता है की 1989 के चुनाव देश में बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया और इसी चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री बनकर दलित और छोट वर्ग के लोगो की सहायता की। सिंह एक निडर राजनेता थे, दुसरे प्रधानमंत्रीयो की तरह वे कोई भी निर्णय लेने से पहले डरते नही थे बल्कि वे निडरता से कोई भी निर्णय लेते थे और ऐसा ही उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ गिरफ़्तारी का आदेश देकर किया था। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने बढ़े हुए भ्रष्टाचार का भी विरोध किया था|

 

श्री वी.पी .सिंह का का प्रधानमंत्री काल

विश्वनाथ प्रताप सिंह एक भारतीय राजनेता और भारत के प्रधानमंत्री थे। उनका कार्यकाल 1989 से 1990 के बीच था। इसके साथ ही वे मंदा साम्राज्य के उत्तरी जागीरदारी के राजा बहादुर थे।

वी.पी .सिंह विशेषतः प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भारत में निचली जाती के लोगो के विकास में किये गये कार्यो और प्रयासों के लिए जाने जाते है। इसके साथ ही सिंह अपनी ईमानदारी के जूनून और देश के लिए सबकुछ न्योछावर करने की इच्छा के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार का भी विरोध किया था।

 

श्री वी.पी .सिंह का निधन

काफी समय तक बहुत से बीमारियों से घिरने के बाद दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल में 27 नवम्बर 2008 को उनकी मृत्यु हुई थी।