लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1901 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। आपका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे बाद में उन्होंने भारत सरकार के आयकर विभाग में क्लर्क के पद पर कार्य किया। शास्त्री जी को घर पर सब नन्हे के नाम से पुकारते थे।

जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं। उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता।

Lal Bahadur Shastri की शिक्षा

श्री लाल बहादुर शास्त्री

श्री लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर अपने नाना जी के घर पर 10 साल की उम्र तक रुके। तब तक उन्होंने कक्षा छः की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी।

उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।

शास्त्री जी का राजनैतिक सफ़र

लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे (1964-1966) ।शारीरिक कद में छोटे होने के बावजूद भी वह महान साहस और इच्छाशक्ति के व्यक्ति थे।

पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के दौरान उन्होंने सफलतापूर्वक देश का नेतृत्व किया। युद्ध के दौरान देश को एकजुट करने के लिए उन्होंने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया। आज़ादी से पहले उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने बड़ी सादगी और ईमानदारी के साथ अपना जीवन गुजारा और सभी देशवासियों के लिए एक प्रेरणा के श्रोत बने।

शास्त्री जी भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ थे।

भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रीमंडल में आपको पुलिस एवं यातायात मंत्रालय सौंपा गया। परिवहन मंत्री के अपने कार्यकाल में आपने महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की।
पुलिस मंत्री होने पर आपने भीड़ को नियंत्रित रखने के लिये लाठी की अपेक्षा पानी की बौछार का प्रयोग लागू करवाया।

1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में शास्त्री जी अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किए गए।

1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजय का श्रेय शास्त्री जी के अथक परिश्रम व प्रयास को जिया जाता है |

1952 में जवाहर लाल नेहरू ने शास्त्री जी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया। तृतीय श्रेणी के डिब्बों में यात्रियों को और अधिक सुविधाएं प्रदान करने में लाल बहादुर शास्त्री के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने रेलवे में प्रथम श्रेणी और तृतीय श्रेणी के बीच विशाल अंतर को कम किया।

1956 में शास्त्री जी ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। जवाहरलाल नेहरू ने शास्त्रीजी को मनाने की बहुत कोशिश की पर लाल बहादुर शास्त्री अपने फैसले पर कायम रहे। अपने कार्यों से लाल बहादुर शास्त्री ने सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के एक नए मानक को स्थापित किया ।

अगले आम चुनावों में जब कांग्रेस सत्ता में वापस आयी तब शास्त्री जी परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्द्योग मंत्री बने। वर्ष 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत के देहांत के पश्चात वह गृह मंत्री बने । सन 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान शास्त्रीजी ने देश की आतंरिक सुरक्षा बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1964 में जवाहरलाल नेहरू के मरणोपरांत सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री को भारत का प्रधान मंत्री चुना गया। यह एक मुश्किल समय था और देश बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा था। देश में खाद्यान की कमी थी और पाकिस्तान सुरक्षा के मोर्चे पर समस्या खड़ा कर रहा था।

1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। कोमल स्वभाव वाले लाल बहादुर शास्त्री ने इस अवसर पर अपनी सूझबूझ और चतुरता से देश का नेतृत्व किया। पाकिस्तान को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और शास्त्रीजी के नेतृत्व की प्रशंसा हुई।

लाल बहादुर शास्त्री का निधन
जनवरी 1966 में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता के लिए ताशकंद में शास्त्री जी और अयूब खान के बीच हुई बातचीत हुई। भारत और पाकिस्तान ने रूसी मध्यस्थता के तहत संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। संधि के तहत भारत युद्ध के दौरान कब्ज़ा किये गए सभी प्रांतो को पाकिस्तान को लौटने के लिए सहमत हुआ। 10 जनवरी 1966 को संयुक्त घोषणा पत्र हस्ताक्षरित हुआ और उसी रात को दिल का दौरा पड़ने से लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया। हालांकि शास्त्री जी की देश के बाहर अचानक हुई मृत्यु को लेकर कई लोगों ने शक भी व्यक्त किया, और इसकी जांच की भी कोशिश हुई लेकिन उनकी मृत्यु का कोई और कारण नहीं पता चल पाया।

शास्त्री जी को सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया गया।  शास्त्री जी को हमारा सादर नमन | जय हिन्द |

श्री लाल बहादुर शास्त्री

श्री लाल बहादुर शास्त्री