महाराणा प्रताप की जीवनी

भारत जहाँ एक तरफ ऋषियों मुनियों की धरती रही है वही दूसरी तरफ एक से बढ़कर एक वीर और शुरवीरों ने भी इसी धरती से जन्म लिया और इसी भारत माँ के खातिर अपना सर्वस्य कुर्वान कर दिया | भारत की इतिहास के पन्ने ऐसे ही शुरवीरों से भरें पड़े है किन्तु उन महान वीरों में से एक नाम ऐसा है जिसका लोहा बिरोधी और शत्रु भी मानते थे | यह नाम है महाराणा प्रताप जिनकी वीरता विश्व विख्यात है | महाराणा प्रताप का नाम भारत के सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी लिया जाता है |

महाराणा का जन्म 9 मई, 1540 में मेवाड़ (राजस्थान) में हुआ| महाराणा मेवाड़ के राजा उदयसिंह तथा महाराणी जयवंता कँवर के पुत्र थे| वो 33 भाई बहनों में सबसे बड़े थे | महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर और साहसी थे| महाराणा प्रताप का बचपन का नाम ‘कीका’ था। बचपन से ही महाराणा को खेद्कुद से ज्यादा युध्कौशल सिखने में और हथियारो से ज्यादा रूचि थी | महाराणा प्रताप के राजनीतिक कारणों से ग्यारह विवाह हुए थे। उनकी पहली पत्नी महारानी अज्बदे पुनवर थी |

महाराणा प्रताप के पास उनका प्रिय घोडा चेतक था जो की अपनी वीरता और स्वामी भक्ति के लिए विश्व विख्यात है| कहते है की चेतक की रफ़्तार हवा जैसी लगती थी | चेतक ने एक बार अपनी जान दांव पर लगाकर काफी गहरे दरिया में कूदकर महाराणा की रक्षा की थी|

महाराणा ने जीवनपर्यंत मातृभूमि की रक्षा और स्वाभिमान के लिए संघर्ष किया| उस समय पूरे हिन्दुस्तान में अकबर का साम्राज्य स्थापित हो रहा था, तब प्रताप 16वीं शताब्दी में अकेले राजा थे जिन्होंने अकबर के सामने खड़े होने का साहस किया और उसकी अधीनता स्वीकार करने से मन कर दिया | अकबर ने Maharana Pratap के लिए एक प्रस्ताव रखा कि प्रताप अकबर की सियासत को स्वीकार कर लेंगे , तो आधे हिंदुस्तान की सत्ता महाराणा को सौप दी जाएगी लेकिन प्रताप ने अकबर के इस प्रस्ताव को मना दिया| वे जीवन भर संघर्ष करते रहे लेकिन कभी भी स्वंय को अकबर के हवाले नहीं किया| अकबर कभी भी प्रताप को अपने अधीन न कर सका |

Maharana Pratap ने अपनी मातृभूमि को न ही परतंत्र होने दिया और न ही कलंकित। विशाल मुगल सेना को उन्होंने लोहे के चने दिया था। मुग़ल की सेना ने चित्तोर पर आक्रमण कर दिया | महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का महायुद्ध 1576 ई. लड़ा गया| इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर की सेना में थे 85000 सैनिक | अकबर की विशाल सेना और लाव लस्कर के बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी | हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था कि युद्ध के 300 वर्षों बाद भी वहां पर तलवारें पायी गयी|

उस युद्ध के बाद मुगलों ने मेवाड़ के कुछ भाग पर कब्ज़ा कर लिया | प्रताप के कुछ साथियों ने उनको रात में ही नींद में महल से सुरक्षित जगह पहुंचा दिया |महाराणा अब जंगल में रह कर युद्ध की तयारी करने लगे |उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए अपने सिंहासन को छोड़ दिया और जंगलों में अपना जीवन बिताया लेकिन अकबर के सामने मरते दम तक अपना सर नहीं झुकाया| धीरे धीरे प्रताप ने अपना कई छेत्र मुगलों के कब्जे से फिर से आजाद करवा लिया |

महाराणा एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे | अकबर उस विद्रोह को दबाने मे असफल रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया। इस बात का लाभ उठाकर महाराणा ने ई.पू. 1585 में मेवाड़ की आज़ादी के लिए और तेज प्रयास करने लगे । उनकी सेना ने मुगल चौकियां पर आक्रमण शरु कर दिए और देखते ही देखते उदयपूर समेत कई महत्वपूर्ण स्थाने पर फिर से उनका अधिकार स्थापित हो गया। धीरे धीरे महाराणा ने अपने पुरे छेत्र पर फिर से अपना अधिकार वापस ले लिए और अकबर कुछ भी ना कर सका |अंतत अकबर अपनी राजधानी लहौर लेकर चला गया |

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उसके बाद Maharana Pratap अपने राज्य के भलाई के कार्यों में लग गए और 29 जनवरी 1597 में मेवाड़ की नई राजधानी चावंड मे प्रताप स्वर्ग सिधार गए । कहते है की अकबर ने जब महाराणा की मृत्यु की खबर सुनी तो वोह भी अवाक् रह गया और उनकी आँखे भी डबडबा गयी | तो ऐसे थे महाराणा जिनकी वीरता का सम्मान शत्रु भी करते थे |

महाराणा प्रताप का नाम तब तक रहेगा जब तक के धरती रहेगी | एक सच्चे शूरवीर , देशभक्त , योद्धा के रूप में महाराणा प्रताप सदैव के लिए अमर हो गए। ऐसे शूरवीर को हमारा कोटि कोटि नमन |जय हिन्द |

महाराणा प्रताप की जीवनी - History of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप की जीवनी – History of Maharana Pratap