दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध करने वाले किशोरों पर भी वयश्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकेगा। किशोर न्याय य(देखभाल और बाल संरक्षण) अिधिनयम2000में बदलाव किये गए हैं | कानून में बदलाव के बाद 18 वर्ष से कम और 16 वर्ष से अिधक आयु के आरोपी भी वयवयस्क माने जाएंगे। उनके विरुद्ध भी वयस्कों पर लगने वाली भारतीय दंड संहि ता (आईपीसी) की धारा के तहत मामले दर्ज होंगे और दोषी होने पर दंड भी मि लेगा। हालांकि , कि स पर मुकदमा चले और किस पर नही, इसका फैसला किशोर नयाय बोर्ड (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ) करेगा। किशोर न्याय ((देखभालऔर बाल संरक्षण) कानून2000के अनुसार 18 बोर्ड तक की आयु वाले अपरािधयों को किशोर माना जाता है। ऐसे अपरािधयोंको किसी भी मामले में दोषी होने पर तीन वर्ष की अिधकतम अविध के लिए बाल सुधार गृह भेजा जाता है।
कानून में परिवर्तन का सुझाव 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली सामूिहक दुष्कर्म कांड में दोषी ठहराए एक अवयस्क को तीन वर्ष केलिए सुधारगृह में रखने की हाई कोर्ट की सजा की पृष्ठ -भूिम में आया है।
संभावित संशोधन के अनुसार :
16 वर्ष से अिधक और 18 वर्ष से कम आयु का कोई किशोर यिद गंभीर अपराध करता है तो किशोरन्याय बोर्ड (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ) तय करेगा की उस पर वयस्क की तरह नियिमत अदालती मुकदमा चले या उसे सुधार गृह भेजा जाए।
वयस्कों की अदालत में मुकदमा चलने के बावजूद किसी भी स्थिति में ऐसे अपरािधयों को आजीवन कारावास या मृत्यु -दंड नहीं दिया जाएगा। ऐसा नही है की अब 16 का किशोर वयस्क कहलाएगा। प्रस्ताव में ऐसा कोई उल्लेख नही है। संशोधन केवल गंभीर अपराध
के मामलों के लि ए ही किया गया है।
देश में किशोर अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं , उनमें से 64 % में आरोपी 16 से 18 वर्ष आयु के किशोर ही होते हैं | प्रति वर्ष देश में किशोरों के खिलाफ औसतन 34 हजार मामले दर्ज हो रहे हैं | उनमें से 22 हजार मामलों में आरोपी 16 से 18 वर्ष के होते हैं ।
इसी कानून की एक धारा में संशोधन कर बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया आसान और तेज बनाने के भी प्रावधान किए गए